विज्ञान के बढ़ते चरण:- आज के युग को विज्ञान के चमत्कारों का युग कहा जाता है। यह सच भी है कि सुबह से लेकर रात सोने तक हम लोग जितनी भी चीज़ें इस्तेमाल करते हैं, प्रायः वे सभी विज्ञान की ही देन हैं। हमारे रसोई-घरों में भी आज विज्ञान का प्रवेश हो चुका है । खाना बनाने वाले बर्तन – प्रेशरकुकर, गैस चूल्हे, मसाला पीसने के लिए मिक्सर, आटा गूंथने की मशीन, रोटी बेलने की मशीन आदि सभी कुछ तो विज्ञान की देन और खोज ही तो हैं । इस प्रकार हमारे व्यावहारिक जीवन के हर क्षेत्र में देखा-परखा जा सकता है । देखने-परखने के लिए भी आज मनुष्य को अपनी आँखों और मन-मस्तिष्क की आवश्यकता नहीं रह गयी। यह कार्य भी तरह-तरह की मशीनें कर रही हैं। सोचने का काम भी आज के वैज्ञानिक मानव ने मशीनों के हवाले कर दिया है। कम्प्यूटर नामक आविष्कार सोच-समझ ही है, विचार करके हमारे हर प्रश्न का उत्तर भी दे सकता है।
विज्ञान के बढ़ते चरण
यंत्र-मानव के बन जाने के बाद अब लगता है, मनुष्यों की किसी भी प्रकार की आवश्यकता नहीं रहने वाली है। सभी प्रकार के कार्य ये यंत्र- मानव ही करने लगेंगे ! इस प्रकार आज का मानव जंगली गुफाओं से बाहर निकल, घने पेड़ों से नीचे उतरकर इस धरती, समुद्र आदि के सभी रहस्यों को तो सुलझा ही चुका है, अब वह अन्तरिक्ष की दिशा में भी बढ़ रहा है और चन्द्रलोक आदि की यात्रा करके इस दिशा मे भी मानव ने बहुत प्रगति कर ली है। इस प्रकार हम सहज ही अनुमान लगा सकते हैं कि आज विज्ञान के चरण कितनी तेज़ी के साथ बढते हुए प्रकृति और जीवन के विविध क्षेत्रों पर अपनी विजय का झण्डा गाड़ते हुए आगे – ही आगे बढ़ते जा रहे हैं।
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विज्ञान के चरण मुख्य रूप से दो दिशाओं में बढ़ रहे हैं। एक दिशा में बढ़कर वे मानवता का कई प्रकार से उपकार कर रहे हैं, तो दूसरी दिशा में बढ़कर वे हर पल मानवता को विनाश और सर्वनाश की ओर ले जा रहे हैं । विज्ञान के पहले अर्थात् मानवता का उपकार करने वाले रूप ने हमारे जीवन के हर क्षेत्र को प्रभावित किया है। अनेक प्रकार की ऐसी बीमारियाँ हैं, पहले जिनका पता तक नहीं चल पाया करता था, आज उनका पता तो चल ही सका है, उनके इलाज के नये-नये तरीके, नये उपकरण और दवाएँ भी विज्ञान की खोजों और प्रयोगों के कारण प्राप्त हो गयी हैं। यही कारण है कि आज के मानव की पहले की तुलना में औसत आयु भी बढ़ गयी है। पहले जो काम करने में और जहाँ पहुँच पाने में महीनों लग जाया करते थे, वैज्ञानिक साधनों की सहायता से वे काम चुटकियों में हो जाते हैं, उन स्थानों पर कुछ ही घण्टों या दिनों में पहुँचा जा सकता है। इस प्रकार विज्ञान समय की बचत करने में तो सहायता पहुँचाता ही है, अनेक प्रकार की सुविधाएँ देकर हमारे कार्यों को सुगम बनाने वाला भी प्रमाणित हो रहा है। उसने गृहिणिग्नों को चौके-चूल्हे के धुएँ से आँखें फोड़ने से मुक्ति दिला दी है, कपड़े धोते समय पटक या कूट-पीट कर उन्हें फटने से बचा लिया है । हमारे लिए तरह-तरह के मनोरंजन और शिक्षा के साधन सहज और सर्वसुलभ बना दिये हैं। घर बैठे-बैठे हम मनोरंजन के साथ-साथ दुनिया की सैर कर सकते हैं। हज़ारों मील दूर बैठे सम्बन्धी से अपने घर पर बैठकर बात कर सकते हैं। विज्ञान अब वह अवसर और साधन भी सुलभ कराने वाला है, जब उसकी सहायता से हम बात करने के साथ-साथ हज़ारों मील दूर बैठे व्यक्ति को देख भी सकेंगे । रेल, कार आदि में यात्रा करते हुए दूर-दराज़ के लोगों से बात कर पाने की सुविधा तो विज्ञान अब तक दिलवा ही चुका है। इस प्रकार स्पष्ट है कि मानव का उपकार करने, उसके लिए सुख के साधन जुटाने के लिए अब तक विज्ञान ने बहुत कुछ किया है और निरन्तर कर रहा है।
विज्ञान के आविष्कारों और खोजों की सहायता से समुद्र का खारा पानी मीठा बनाकर मानव समाज की बहुत बड़ी आवश्यकता पूरी की जाने लगी है। इसी तरह वैज्ञानिक उपकरणों की सहायता से बंजर भूमि को खेती-बाड़ी के योग्य बनाया जा रहा है, खेती योग्य भूमि की उपज बढ़ायी जा रही है और रेगिस्तानों को नखलिस्तान (हरे-भरे) में बदला जा रहा पहाड़ काटकर सड़कें बनायी जा रही हैं । यहाँ तक कि ऋतुओं के प्रभाव को बदल डालने में भी सफलता प्राप्त कर ली गयी है । उन्नत औषधि-विज्ञान और चिकित्सा उपकरणों की सहायता से वह कई बार अकाल मृत्यु का शिकार हो रहे लोगों को बचा अवश्य लेता है, टूट-फूट कर चूर-चूर हो चुकी हड्डियों और अंगों को दुबारा जोड़ और पहले की तरह प्राणवान अवश्य बना लेता है, यद्यपि मृत्यु पर वह काबू नहीं पा सका । प्रयत्न करके भी उसका रहस्य नहीं जान सका !
अब तनिक उस दूसरी दिशा का दर्शन भी करें, जिधर बढ़ रहे विजय के चरण हर पल संसार के सर्वनाश को घसीट कर और समीप लाते जा रहे हैं । विज्ञान की इस विनाश लीला के प्रथम दर्शन और दूसरे विश्व-युद्ध के अवसर पर जापान के हिरोशिमा और नागासाकी नामक नगरों पर गिराये गये परमाणु बमों के कारण हुए थे । विज्ञान की सहायता । से उन परमाणुओं पर विजय प्राप्त कर ली गयी, जो सृष्टि के हर प्राणी और हर वस्तु की रचना का मूल कारण हैं। वैज्ञानिक यदि चाहते, तो उन परमाणुओं को पाकर उनका विखण्डन मानवता का उपकार करने के लिए तभी कर सकते थे, पर नहीं, वैसा नहीं किया गया। परमाणु की उस शक्ति का प्रयोग मानवता और उसकी उपलब्धियों का नाश करने के लिए किया गया। फिर अब तो विज्ञान के चरण विनाश की इस भयानक राह पर और भी अधिक आगे बढ़ चुके हैं। अब तो ऐसी-ऐसी संघातक गैसों का प्रयोग किया जाने लगा है कि उनके चलने पर साँस तक लेने का अवसर नहीं मिल पाता। इतना ही नहीं, जैविक शस्त्रास्त्र बनने लगे और प्रयोग में लाये जाने लगे हैं। हाइड्रोजन और कोबाल्ट बम्बों के युग से भी बात बहुत आगे बढ़ चुकी है । कोई भी सिरफिरा आदमी खुद किसी तहखाने में सुरक्षित बैठकर मात्र एक बटन दबाकर हज़ारों मील दूर तक मानवता का सर्वनाश कर सकता है । इतना ही नही, गैसें और बम छोड़कर दूसरे देशों में तरह-तरह की बीमारियाँ फैलायी जा सकती हैं। मानवता के शैशव को जन्म लेने से पहले और बाद में कभी भी लँगड़ा-लूला बनाया जा सकता है। कल्पना कीजिए, यदि कभी ऐसा हो गया, तो इस हरी-भरी, निरन्तर विकास कर रही हमारी दुनिया का क्या हाल होगा ? वह श्मशान और खण्डहर बनकर रह जायेगी। इसी कारण आज के प्रायः सभी देशों के मानवतावादी वैज्ञानिक विनाश की ओर निरन्तर बढ़ रहे विज्ञान के इन चरणों पर कठोर अंकुश लगाने के पक्ष में हैं !
इस प्रकार विज्ञान के अच्छे-बुरे दोनों रूप और पक्ष हमारे सामने हैं। विज्ञान मानवता के लिए स्वास्थ्यवर्द्धक टॉनिक, अमृत भी हो सकता है और उसको नाश करने वाला विष भी। इन दोनों दिशाओं में उसके चरण लगातार बढ़ते जा रहे हैं। इस बात का निर्णय सभी देशों के जागरूक वैज्ञानिकों, विशेषकर सत्तारूढ़ राजनीतिज्ञों को करना है कि मानवता के स्वास्थ्य की रक्षा करनी है, या उसे विष पीकर मरने देना है। यह ध्यान रहे कि यदि मरना पड़ेगा, तो आम लोगों के साथ उन वैज्ञानिकों को भी मरना पड़ेगा, जो विष बना रहे हैं। उन राजनेताओं को भी मरना पड़ेगा, कि जो सत्ता के मद में डूबकर इस विष को बनवा रहे हैं । जो हो, यदि हमें अपने-आप और मानवता को मरने नहीं देना है, मानवता ने सदियों से लगातार परिश्रम करके जो उपयोगी उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं, यदि उन्हें यों ही नष्ट नहीं हो जाने देना है, तो हमें विज्ञान की सामग्री जुटाने की दिशा में बढ़ रहे चरणों पर कठोर नियंत्रण लगाना होगा। मानव-उपकार करने की दिशा में बढ़ रहा विज्ञान का चरण तभी अपने वास्तविक लक्ष्य तक पहुँच पाने में सफल हो सकेगा, अन्यथा नहीं ।