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निबंध – भारत का किसान : nibandh – bhaarat ka kisaan

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nibandh - bhaarat ka kisaan
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निबंध – भारत का किसान : nibandh – bhaarat ka kisaan: भारत ज्ञान-विज्ञान की हर प्रकार की प्रगतियों वाले आज के युग में भी कृषि प्रधान देश बना हुआ है। आज भी भारत के अर्थतंत्र का आधार खेती-बाड़ी और अच्छी फसल ही है। यही कारण है कि भारत में आज भी किसान को बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है 1 एक परम्परा के रूप में किसान का नाम लेते ही जो चित्र हमारे सामने उभर कर आता है, वह बड़ी मेहनत करने के बाद भी स्वयं भूखा नंगा रहने वाले व्यक्ति का ही आता है। किन्तु आधुनिक भारत के किसान के बारे में इस प्रकार की धारणा, इस प्रकार का विचार पूर्ण सत्य नहीं कहा और माना जाता। पहले की तुलना में आज खेती-बाड़ी पूरी तरह से वैज्ञानिक ढंग से होने लगी है। खेती के लिए काम आने वाले औज़ार भी उन्नत किस्म के प्राप्त हैं। बीज, खाद, कीड़ों और बीमारियों से रक्षा करने वाली दवाइयाँ, सिंचाई की व्यवस्था आदि सभी कुछ वैज्ञानिक ढंग से उत्तम किस्म का होने लगा है । फिर पहले की तुलना में आज का किसान अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक भी अधिक है। काफी संख्या में वह पढ़-लिख पाने में भी समर्थ हो गया है । इसलिए आज के किसान को न तो परम्परा में रखकर देखा जा सकता है, न उस घिसे-पिटे तरीके से उसकी वास्तविक दशा पर विचार ही किया जा सकता है। उसके लिए खेती-बाड़ी और उसे करने वाले किसानों के सम्बन्ध में सभी प्रकार के नये सन्दर्भों की जानकारी आवश्यक है !

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निबंध – भारत का किसान : nibandh – bhaarat ka kisaan

है, जिसकी रोटी-रोज़ी और जीवन-निर्वाह, कृषि योग्य भूमि तथा कृषि कार्यों से जुड़ा रहता । इस प्रकार के लोगों की चार श्रेणियाँ बनायी जा सकती हैं- पहली श्रेणी में वे लोग आते हैं कि जिनके पास बड़े-बड़े फार्म हाऊस, सैंकड़ों या हज़ारों एकड़ कृषि योग्य भूमि है। ऐसे लोग जमींदार या भूस्वामी कहे जाते हैं। इस श्रेणी के लोग प्रायः स्वयं कृषि कार्य नहीं करते, यद्यपि उनकी रोटी-रोज़ी और जीवन-निर्वाह कृषि कार्यों और कृषि उपजों पर ही निर्भर हुआ करता है । ये लोग अपनी खेती-बाड़ी पर अपने कारिन्दों के द्वारा केवल निगरानी रखा करते हैं, अधिकतर लाभ के हकदार बना करते हैं और हानियों को प्राय: खेती करने वालों पर डाल दिया करते हैं। इनके खेतों में काम करने वाले या तो गुज़ारे ( फसल का आधा भाग लेकर काम करने वाले किसान) पर काम करते हैं, या फिर दिहाड़ी अथवा मासिक मज़दूरी लेकर काम करने वाले किसान होते हैं, जिन्हें मज़दूर किसान कहा जाता है इस प्रकार खेती-बाड़ी पर आधारित रहने वालों की तीन श्रेणियाँ स्पष्ट हो जाती हैं – 1. जमींदार, 2. गुजारे या बटाईदार और 3. मजदूर किसान, ! चौथी श्रेणी उन किसानों की है कि जिनके पास चार-पाँच या दस-बीस एकड़ जमीन होती है। इस श्रेणी के लोग जमींदार किसान या भूमिहर किसान कहे जाते हैं । ये लोग अपनी भूमि पर अधिकतर स्वयं ही सभी प्रकार के कार्य किया करते हैं, इस कारण सारी उपज के स्वामी स्वयं ही होते हैं । कभी-कभार सहायता के लिए ये लोग कुछ देर के लिए मज़दूर किसानों को भी रख लिया करते हैं । उन्हें निश्चित रुपये या अनाज आदि मजदूरी के रूप में दिया जाता है !

nibandh - bhaarat ka kisaan
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भारतवर्ष में किसानों के ये चारों रूप सभी जगह पाये जाते और देखे जा सकते हैं । इनमें पहला वर्ग जिसे मूलरूप से किसान न कहकर जमींदार कहना चाहिए, बड़ा शक्तिशाली है। वह अपार धन-सम्पत्ति का स्वामी तो है ही, जन-शक्ति को भी दबाये और बनाये रखने में समर्थ होता है। यह वर्ग आम किसान को मिलने वाली सभी प्रकार की सुविधाएँ तो प्रभाव-दबाव से प्राप्त कर लेता है, पर न तो सरकार को किसी प्रकार का कर देता है और न मज़दूर-किसानों को किसी प्रकार की सुविधा ही दे पाता है ! दूसरों की कमाई पर मौज करना और मूँछें मरोड़ना ही इस वर्ग का काम रहता है ! देहातों में यह वर्ग हर प्रकार से अपनी मनमर्जी चलाता है। दूसरा वर्ग है मुजारों का अर्थात् उन किसानों का, जिनके पास अपनी कृषि योग्य भूमि तो नहीं, पर उनका जीवन पीढ़ी दर पीढ़ी कृषि कार्यों में ही बीत जाता है । यह कृषि कार्यों का सारा बोझ उठा कर पैदावार के आधे के हकदार होते हैं । बड़े जमींदारों के मुज़ारों को आंधे के रूप में भी काफी फसल प्राप्त हो जाती है। उससे इनका जीवन सामान्य तौर पर सभी सुविधाएँ प्राप्त कर लेता है, पर भूमिहीन होने के कारण इन्हें भूस्वामियों से दबकर रहने को विवश होना पड़ता है।

तीसरा वर्ग है छोटे भूस्वामियों का । यह वर्ग क्योंकि स्वयं मेहनत करके खेती-बाड़ी करता है, अतः पूरी पैदावार का खुद मालिक होता है । सामान्य तौर पर इसे हम मुज़ारों से अधिक सुखी और स्वतंत्र कह सकते हैं। इनपर किसी भी बाहरी आदमी का कोई दबाव नहीं रहता । सुख-सन्तोष का भाव भी इसी वर्ग में अधिक हुआ है।

कृषि – जीवियों का मध्यवर्ग कह सकते हैं। चौथा वर्ग है मज़दूर किसानों का । इस वर्ग का जीवन आज भी सर्वाधिक दुखी, पीड़ित और शोषित कहा जा सकता है । इस वर्ग के किसान चाहे बड़े जमींदारों के खेतों में काम करते हों और चाहे मध्यवर्गीय या सामान्य वर्ग के किसानों के। हर हाल में इन्हें पूरी तरह से, कई प्रकार के दबावों में रहकर काम करना पड़ता है । फिर इन्हें पूरा वर्ष काम मिलता भी नहीं, मज़दूरी भी कम मिलती है। इन से प्राय: बेगार भी ली जाती है। इस कारण इन्हें जमींदारों, काम देने वाले किसानों या फिर महाजनों का ऋणी रहना पड़ता है । अन्ध-विश्वासी भी ये ही अधिक होते हैं, इस कारण कई तरह की परम्पराएँ और रुढ़ियों से घिरे रहने के कारण इन्हें कष्ट-ही-कष्ट भोगने पड़ते हैं।

सामान्य रूप से कहा जा सकता है कि मध्य और निम्न मध्य वर्ग का किसान आज अधिक सुखी और सम्पन्न है । इसके कई कारण हैं। पहला तो यह कि इन वर्गों के लोग स्वयं काम और परिश्रम पर विश्वास रखते हैं। दूसरे, इन वर्गों के लोग पढ़-लिख जाने के कारण अधिक जागरूक और क्रियाशील हैं। वे खेती की व्यवस्था इस ढंग से कर रहे हैं कि पहले की तरह अब खेत छः-छः महीने खाली नहीं पड़े रहते । एक फसल की कटाई होते ही लगभग अगली की बुवाई आरम्भ कर देते हैं। तीसरे, इस वर्ग के किसान खाली समय में छोटे-बड़े कुटीर उद्योग भी चलाने लगे हैं। इससे उन्हें अतिरिक्त आय तो हो ही जाती है, कई बेकारों क़ो रोज़गार भी मिल जाता है। इस वर्ग के किसान फल-सब्जियाँ और फूल आदि भी उगाने लगे हैं कि जिन्हें उगाना पहले हीनता माना जाता था । पशु-पालन और दूध-उत्पादन का धन्धा भी प्रायः यही करते हैं। उच्च जमींदार वर्ग व्यर्थ के रोब- दाब में लगा रहता है, अतः उसके पास विशाल भूमि होने का बल तो है, पर कृषि कार्यों और उपज का बल नहीं है। मज़दूर किसान महँगाई बढ़ने, साल-भर काम न मिलने और ऋणग्रस्त रहने के कारण दिन-प्रतिदिन और भी परेशान होता जा रहा है

जो हो, आज किसान शब्द सुनते ही एक दुखी, दरिद्र, भूखे- नंगे, तरह-तरह के रोगों और विकारों से ग्रस्त भारतीय जन का रूप नहीं उभरता। आज उसका चेहरा भरता हुआ, रंग-रूप निखरता हुआ दिखाई देने लगता है। यह भी लगने लगता है कि आज उसे सभी सुविधाएँ सहज ही प्राप्त हो गयी हैं, या हो रही हैं कि जो नगर में रहने वाले उस जैसी स्थिति वाले किसी भी व्यक्ति को प्राप्त हैं या हो सकती हैं, अथवा होनी चाहिए। कहने का तात्पर्य यह है कि ज्ञान-विज्ञान की सुविधाओं, व्यवस्थाओं और लगन से किये गये परिश्रम से भारतीय किसान के बारे में जो धारणा चली आ रही थी, आज वह पूरी तरह से बदल चुकी और बदल रही है। भारतीय किसान का रूप दिन-प्रतिदिन उजला हो निखरता आ रहा है- निखरता जायेगा !

Zaheer Usmani

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