Essay Of Indian Woman: ExamGro “Essay Of Indian Woman : भारतीय नारी पर निबंध” एक निबंध प्रस्तुत कर रहा है। इस निबंध के माध्यम से आप भारतीय महिलाओं के रहन-सहन, खान-पान, पहनावे, आदर-सम्मान, राजनीतिक-सामाजिक पतन, धार्मिक-कारण, वेद-शास्त्रों के बारे में जान पायेंगे। इस निबंध के माध्यम से आप भारतीय नारीयों के इतिहास के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त कर पायेंगे। भारतयी इतिहास में भारतीय नारियों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। चाहें वह राजनीतिक क्षेत्र में हो या फिर विज्ञान के क्षेत्र में। नारियां हमेशा से पुरुषों के साथ कांधे-से-कांधा मिलकर रही
“भारतीय नारी” हमारा देश भारत एक महान् परम्पराओं वाला देश है। सृष्टि-विकास के आरम्भ से ही यहाँ पर नारी के प्रति आदर-सम्मान की पवित्र भावना रही है। तभी तो इस प्रकार की धारणाएँ और कहावतें बन सकीं कि ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता’ अर्थात् जहाँ नारी का मान होता है. वहाँ देवता निवास करते हैं। यों तो सारे संसार में ही नारी को नर से बढ़कर माना जाता रहा है, हर संस्कृति नारी के प्रति आदर भाव रखने की प्रेरणा देती है, पर भारत देश और भारतीय संस्कृति में तो नारी को वास्तव में पूजा-भाव और सम्पूर्ण सम्मान प्रदान किया गया। शक्ति और माता के रूप में अनेक देवियों की कामना इस बात का स्पष्ट प्रमाण है। हर धार्मिक-सामाजिक कार्य को पत्नी रूप में नारी के अभाव में अधूरा मानना, न करने का विधान करना भी नारी के महत्त्व को ही प्रमाणित करता है । सम्मान और पूजा-भाव के कारण ही यहाँ हर परम पुरुष के साथ एक नारी की भी देवी और माता के रूप में कल्पना की गयी है, जैसे-राम से पहले सीता, कृष्ण के साथ राधा, शंकर के साथ पार्वती आदि। सो कहा जा सकता है कि प्राचीन भारतीय नारी हर प्रकार से आदर्श का प्रतीक मानी गयी। पुराण और इतिहास इस बात के गवाह हैं कि नारी ने भी हर तरह के त्याग और बलिदान के रास्ते पर चल कर अपने आदर्श रूप और अपने प्रति अपनाये गये पूजा – भाव की रक्षा की।

भारतीय इतिहास के मध्य काल में पहुँच कर भारतीय नारी का मान-सम्मान घटने लगता है। अनेक प्रकार के राजनीतिक-सामाजिक पतन और धार्मिक कारणों के कारण मध्यकाल में नारी को अपने घरों में कैद होकर रह जाना पड़ा। उसे सिर्फ भोग की वस्तु और पुरुष की चल सम्पत्ति माना जाने लगा। उसके लिए शिक्षा पाने तक पर पाबन्दी लगा गयी । यहाँ तक कह दिया गया कि उसे वेद-शास्त्र पढ़ने, या पूजा-विधान करने का श्री अधिकार नहीं था ! फिर भी इतिहास बताता है कि अवसर पाकर नारी – सत्ता अपनी पूरी शक्ति के साथ उभर कर सामने आती रही । देश, जाति, घर-परिवार आदि का मान-सम्मान रखने के लिए वह हर प्रकार का त्याग और बलिदान करती रही ! अपने नारीत्व और उसके महान् भाव को उसने कभी मरने नहीं दिया। हमेशा जीवित रखा। कहा जा सकता है कि भारतीय नारी ने हर कष्ट और दबाव सहकर भी अपनी महान् परम्परा को कभी मरने या समाप्त नहीं होने दिया !
Essay Of Indian Woman
इसके बाद आता है आधुनिक काल ! इस काल में आकर नारी – शिक्षा के साथ-साथ उसके जागरण और स्वतंत्रता का आन्दोलन आरम्भ हुआ। महात्मा गाँधी जैसे राष्ट्र-नेताओं से प्रेरणा पाकर अनेक नारियाँ स्वतंत्रता आन्दोलन में शामिल हो गयीं । क्रान्तिकारी दलों के साथ मिलकर भी नारियों ने महत्त्वपूर्ण कार्य किये। यहाँ तक कि ‘आज़ाद हिन्द फॉंज’ के साथ मिलकर देश की स्वतंत्रता के लिए शस्त्र तक उठा कर नारियाँ शत्रुओं से लोहा लेती रहीं। फलस्वरुप, नारी-पुरुष के सामूहिक प्रयत्नों से देश स्वतंत्र हुआ । भारतीय समाज के अन्य वर्गों के समय नारी-वर्ग का भी नया जीवन, नयी भूमिका और नये महत्त्व का आरम्भ हुआ। उसके लिए जीवन के हर क्षेत्र में प्रवेश पा सकने के लिए द्वार खुल गये । वह पुरुषों के साथ ही शिक्षा ग्रहण करके आगे बढ़ने लगी। पहले-पहल उसने शिक्षिका या नर्स के रूप में केवल दो ही क्षेत्रों में प्रवेश किया। फिर स्टैनो-टाइपिस्ट आदि बनकर उसने सरकारी दफ़्तरों में कदम रखे ! आज वह ऊँचे-से-ऊँचे सरकारी पद पर पहुँच चुकी है । वह संयुक्त राष्ट्रसंघ की प्रधान भी रह चुकी है और देश की प्रधान मंत्री भी बन चुकी है। वह वायुयान भी उड़ा रही है और बड़े-बड़े कारोबारी कार्यालयों, कारोबारों का सफलतापूर्वक संचालन भी कर रही है । वह शिक्षाविद्, वैज्ञानिक, डॉक्टर, इंजीनियर आदि सब कुछ बन चुकी है ! कई क्षेत्रों में तो उसे पुरुष से भी अधिक सफल सार्थक माना जाता है। घर-परिवार के संचालन में वह आर्थिक दृष्टि से भी पूरा सहयोग कर रही हैं। कई घरों-परिवारों को तो पूरी तरह चला ही नारी रही है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि भारतीय नारी स्वतंत्र भारत में वह सब कर रही है, जो पुरुष करते रहे या फिर आज भी कर रहे हैं ।

पुलिस-बलों में तो भारतीय नारी ने कई प्रकार के जोखिम भरे ऐसे कार्य सफलता-पूर्वक करके दिखाये हैं, जिन्हें पुरुष अधिकारी भी नहीं कर सके। इस प्रकार आज भी नारी में शक्ति और साहस पुरुष से भी कहीं अधिक है। अब तो भारतीय सेना के द्वार भी साहसी नारियों लिए खुल गये हैं। अब कोई भी क्षेत्र उनके लिए वर्जित नहीं रह गया। प्रश्न उठता है कि इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी क्या नारी वास्तव में स्वतंत्र हो चुकी है? उसके जो सम्मानजनक वास्तविक अधिकार हैं, क्या उसे मिल चुके है ? हमारे विचार में इन और इस जैसे अनेक प्रकार के प्रश्नों का उत्तर नहीं ही हो सकता है।
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हमारे विचार में आज के वातावरण और मूल्यहीन परिस्थितियों ने भारतीय नारी का जीवन पहले से कहीं अधिक असुरक्षित बना दिया है। स्वतंत्रता से पहले वह देर-सबेर भी निडरतापूर्वक कहीं आ-जा सकती थी, पर आज ऐसी बात नहीं । कहा जा सकता है कि अपने घर में ही वह सुरक्षित नहीं रह गयी है। हर जगह लुच्चे-लफंगों से भरा यह भेड़िया समाज उसे कच्चा चबा जाने के लिए लार टपकाता रहता है। उसे कच्चा चबा जाना चाहता है । आज फिर उसे केवल भोग-विलास की सामग्री बना दिया गया है। वह सुन्दर, सुघड़, कमाऊ, परिश्रमी आदि सभी कुछ है, फिर भी छोटे-छोटे स्वार्थों के लिए उसे अपमानित किया जाता है । दहेज़ जैसी कुरीतियों का शिकार बनाकर उसे जलाकर मार डाला जाता है ! सब प्रकार के गुणों से सम्पन्न होते हुए भी आज उसे कोई उपभोक्ता सामग्री या जिन्स मात्र बनाया जा रहा है। कहा जा सकता है कि नारी शिक्षा, नारी स्वतंत्रता आन्दोलन आदि के नाम पर उसे अधिक-से-अधिक दुर्बल बनाया जा रहा है। सर्वगुण सम्पन्न नारी का महत्त्व पुरुष समाज का अहं स्वीकार करना ही नहीं चाहता, यह एक बहुत बड़ी विडम्बना है !
जो हो, भारतीय नारी का स्वावलम्बी बनने का प्रयास प्रशंसनीय है । वह हर प्रकार के अपमान, कष्ट और विरोध- बाधा को सहन करते हुए भी अपनी वास्तविक मुक्ति का, सच्ची स्वतंत्रता का प्रयास कर रही है। अब वह सिर्फ माखन की टिकिया नहीं बनी रहना चाहती कि जो थोड़ी-सी आँच पाकर पिघल जाये या ठण्डक पाकर जम जाये ! नहीं, अपना संतुलन बनाये रखकर अपनी लड़ाई आप लड़ने के लिए कमर कसे हुए है। उसके पास प्रबलता से जागा हुआ आत्मविश्वास है, सुनहरे भविष्य की आशा है और है अदम्य साहस, काम करने की शक्ति, हर हालत में डटे रहने का पक्का निश्चय ! अतः अब वह दिन दूर नहीं, जब वह निश्चित रूप से अपना वास्तविक अधिकार प्राप्त कर लेगी। उसे सहारा देने के लिए भारतीय पुरुष-समाज का दृष्टिकोण और व्यवहार बदलना भी बहुत ज़रूरी है। उसे नारी के प्रति सहज-सरल स्वभाव और व्यवहार बनाना होगा। तभी हमारे जीवन और समाज का यह महत्त्वपूर्ण आधा अंग सच्चा मान-सम्मान, वास्तविक अधिकार और स्वतंत्रता प्राप्त कर सकेगा !