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निबंध – आज की बचत कल का सुख | Aaj ke Bachat Kal ka sukh

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Aaj ke Bachat Kal ka sukh
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निबंध – आज की बचत कल का सुख | Aaj ke Bachat Kal ka sukh : संसार में जिसे समय या जीवन कहा जाता है, उसके मुख्य तीन भाग माने गये हैं जो बीत चुका है, समय और जीवन के उस भाग को अतीत या भूतकाल कहा जाता है ! क्योंकि यह घट कर बीत चुका है, इस कारण इसके लिखित रूप को इतिहास भी कहा जाता है। जो घट और बीत रहा है, समय और जीवन के इस भाग को वर्तमान काल या वर्तमान जीवन कहा जाता है। इसके विपरीत आज के हमारे घट और बीत रहे समय जीवन के परिणामस्वरूप कल या आने वाले समय में घटेगा, होगा या बीतेगा और जिसके बारे में आज निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता, उसे भविष्यत्काल, आने वाला समय या भावी जीवन-संसार कहा जाता है ! बीते समय या भूतकाल में अपनी परिस्थितियों और वातावरण के अनुसार मानव-जीवन और समाज ने अच्छा-बुरा, उचित-अनुचित जो कुछ भी किया, उसी सबका परिणाम या फल हम लोग आज भोग रहे हैं । यह भी निश्चित है कि आज हम अच्छा-बुरा, उचित – अनुचित जो कुछ भी करेंगे, हमारी आने वाली पीढ़ियों को उसी सब का परिणाम और फल भोगना पड़ेगा ! आज का कर्म, कल का परिणाम या फल- भोग है, जीवन और प्रकृति का यही अटल नियम है।

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ऊपर जो कहा गया है, उसे एक उदाहरण से स्पष्ट समझा जा सकता है। भूतकाल में मनुष्य जंगलों, पहाड़ी गुफाओं में रहकर शिकार के सहारे जीवन गुज़ारा करता था। लेकिन धीरे-धीरे जब प्रकृति के खुले या गुफाओं के अंधेरे वातावरण की परिस्थितियाँ मनुष्य के लिए असहनीय होती गयी, तब उसने सोच-समझ कर उनसे बाहर निकलने का प्रयत्न किया ! उसने झोपड़ियां, फिर कच्चे मकान, फिर ईंट-गारे के सामान्य मकान बनाने शुरू किये। यही प्रक्रिया निरन्तर आगे बढ़ती रहकर किलों, राजमहलों और आज के कई-कई मंज़िलों वाले लिफ्ट लगे भवनों के रूप में हमारे सामने आयी है। आज का जो है, उसके आधार पर आने वाले कल या भविष्य का निर्धारण इस आधार हमारी वर्तमान की क्रिया-प्रक्रिया और गति विधियाँ किस प्रकार की रहती हैं बीते कल की सोच, परिश्रम और प्रक्रिया का फल हम आज भोग रहे हैं। कुछ कर रहे हैं, उसका फल आने वाले कल या भविष्य की हमारी पीढ़ियाँ भोगेंगी ! इसी आधार पर यह भी स्पष्ट कहा और समझा जा सकता है कि आज की बचत ही कल या भविष्य के हमारे जीवन का सुख बन सकती है !

निबंध – आज की बचत कल का सुख | Aaj ke Bachat Kal ka sukh

मनुष्य एक सोच-विचार कर सकने में समर्थ सामाजिक प्राणी है । वह जानता है कि सब दिन एक जैसे नहीं बीता करते । समय स्वभाव से ही गतिशील और बदलने वाला है। आज हमारे नयन-प्राण, हमारे हाथ-पैर सही सलामत हैं। उनमें देखभाल या सोच-विचार कर ठीक ढंग से परिश्रम करने की शक्ति है ! समय और स्थितियों का क्या पता ? कल को यह शक्ति, यह स्थिति नहीं भी रह सकती ! तब यदि मनुष्य ने अपनी कमाई से कुछ बचाकर नहीं रखा होगा, तो बहुत संभव है कि कोई भी उसकी सहायता करने न आए। – उसे लाचारी में भूखा मर जाना पड़े ! यही सोच-समझकर ही बुद्धिमान लोग तरह-तरह से बचत करने, अपने कमाए धन में से एक अच्छा भाग सुरक्षित रखने का प्रयास किया करते हैं। आज क्या किसी भी युग में दूसरों के यहाँ तक कि अपनी सन्तानों के भरोसे रहकर जीवन जिया नहीं जा सकता। ऐसे उदाहरण समय-समय पर सामने आते रहते हैं कि जब वृद्ध माँ-बाप को कई-कई समर्थ सन्तानों के रहते हुए भी दर-दर भटकना पड़ा ! अनाथालयों में आश्रय लेना पड़ा, या फिर भीख माँगते हुए फुटपाथों पर अन्तिम साँस लेनी पड़ी। इस प्रकार की स्थिति किसी भी प्राणी पर आ सकती है। यदि इनकी सम्भावना पर विचार कर वह पहले से ही बचत आरम्भ कर देता है, तो भाग्य या दुर्भाग्य से बेसहारा होने पर वह अपना कल यानी भविष्य का जीवन सुखपूर्वक काट सकता है। अतः बुद्धिमत्ता यही है कि सुख के लिए आज से ही बचत शुरू कर दे।

Aaj ke Bachat Kal ka sukh

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सरकारी नौकरियों में जो भविष्य निधि काटने और देने का प्रावधान रहता है, पेंशन आदि देने की व्यवस्था की जाती है, उसका वास्तविक उद्देश्य बचत करके कल के जीवन सुख और के तरह-तरह के वाहनों से भरे भीड़-भाड़ वाले जीवन में कभी भी कोई दुर्घटना घट सकती सुरक्षा की व्यवस्था करना ही है । जीवन में, विशेषकर आज के महानगरों के तरह-तरह के वाहनों से भरे भीड़-भाड़ वाले जीवन में कभी भी कोई भी दुर्घटना घट सकती है। कुछ भी बुरा-भला हो सकता है। यदि घर का कमाऊ सदस्य ही न रहे, तो बाकी परिवार का तो फिर भगवान ही मालिक हुआ करता है । इसी प्रकार की दुखदायक स्थितियों से भविष्य को बचाये रखने के लिए कई प्रकार की बचतों को बढ़ावा दिया जाता है। बीमा कम्पनियाँ इसी उद्देश्य से आरम्भ की गयीं । जीवन सुरक्षित रहना चाहिए। केवल सुरक्षित ही नहीं, सुखी और सुविधापूर्वक भी बीतना चाहिए। ऐसा तभी संभव हो सकता है, जब ‘आज की बचत कल का सुख’ जैसे वाक्यों का अर्थ समझकर तत्काल उस पर आचरण भी आरम्भ कर दिया जाये ! बुद्धिमानी इसी बात और प्रयास में है !

कुछ लोग ‘खाओ पिओ और मौज करो’ का सिद्धान्त मानकर चलने वाले हुआ करते हैं। कुछ लोग ‘अरे, आज खा-पीकर मौज कर लो, कल किसने देखा है, जैसे सिद्धान्तों की बातें किया करते हैं। कुछ लोग ‘कल देखा जायेगा’ जैसी बातें भी कहा करते हैं। इस प्रकार की बातें करने – कहने वाले लोग दूरदर्शी न होकर प्रायः आलसी किस्म के या बुद्धिहीन ही हुआ करते हैं। ऐसे ही लोगों को हारी-बीमारी में दूसरों के सामने हाथ फैलाकर गिड़गिड़ाते हुए सहायता माँगते हुए देखा जा सकता है। वक्त पड़ने पर वे लोग भविष्य में निरन्तर परिश्रम और बचत करने की बातें कह तो देते हैं, पर समय बीत जाने पर सब भूल, फिर अपनी गलत धारणाओं का शिकार होकर दुख पाते रहते हैं । ध्यान देने और याद रखने वाली बात है कि भूख-प्यास तो लगती ही है । अच्छा इसी में है कि इनसे छुटकारा पाने की व्यवस्था पहले ही से कर रखें। प्यास लगने पर कुआँ खोदने की कोशिश में प्यासे की मृत्यु भी हो सकती है। भूख लगी होने पर इच्छा करके भी काम कर पाना संभव नहीं हुआ करता । यही सब सोच-समझ बुद्धिमान लोग समय का सदुपयोग करते हुए, अपनी कमाई का भाग बचाना आरम्भ कर देते हैं।

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परिश्रम और बचत करना जहाँ एक व्यक्ति के लिए आवश्यक है, लाभदायक है, भविष्य की सुख-सुविधा और सुरक्षा की गारण्टी है, वहाँ सारे समाज, देशों और जातियों के बारे मे भी यह सत्य है । सामूहिक रूप से परिश्रम और बचत करना ही पूरे समाज, जाति और राष्ट्र की सुख-सुविधा और सुरक्षा की गारण्टी हो सकता है। इसलिए हमें देश रूपी विशाल समाज का एक अंग होने के नाते अपने भविष्य की चिन्ता तो करनी ही चाहिए. सारे समाज और राष्ट्र के भविष्य की चिन्ता करना भी हमारा कर्तव्य हो जाता है। कहावत भी है कि बूँद-बूँद से ही घड़ा भरा करता है, जल की बूँद-बूँद से ही विशाल समुद्र का स्वरूप बन । करता है। सो हर आदमी का कर्तव्य हो जाता है कि वह अपने व्यक्ति रूप बूँद को समाज देश रूपी घड़े या समुद्र में मिला दे। अपने से भी पहले वह समाज और राष्ट्र के कल के सुख की सोचे। उसके लिए लगातार परिश्रम करे ! उसके परिश्रम से अर्जित एक-एक पैसा उसके अपने लिए सारे समाज के लिए सुख की कल्पना साकार कर सकेगा, ऐसा हमारा विश्वास है ।

बचत : धन की या समय की, वर्तमान के सुखों का कारण तो बना ही करती है, भविष्य के सुख को भी सबके लिए सुरक्षित और आरक्षित कर सकती है-महापुरुषों की यह बात मानकर हर आदमी को आज और इसी क्षण से ही उस दिशा में कार्यशील हो जाना चाहिए।

Zaheer Usmani

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