भारत की स्वतंत्रता के चवालीस वर्ष :- पन्द्रह अगस्त, सन् उन्नीस सौ सैंतालीस को भारत स्वतंत्र हुआ था । इस महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना को घटे चवालीस वर्ष बीत गये हैं । उस समय जो लोग इस घटना के साक्षी थे, उनका कहना है कि लगता है जैसे कल की ही बात हो ! इससे सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि समय कितनी तेज़ी से व्यतीत होता है। उसके जाने का पता तक नहीं चल पाता है। वह खुद तो बीत जाता है, पर घटने वाली विशेष घटनाएँ और महत्त्वपूर्ण कार्यों के रूप में अपनी अच्छी-बुरी यादें छोड़ जाया करता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में भी पिछले चवालीस वर्षों में बहुत कुछ हो और घट चुका है। उनका सामान्य लेखा-जोखा कुछ इस प्रकार से किया जा सकता है
पहले दुर्घटनाओं को लें। स्वतंत्रता प्राप्ति के मात्र पाँच-छ: महीने बाद ही देश को अपने निर्माता महात्मा गाँधी को खोना पड़ा। उसके बाद सैकड़ों रियासतों को स्वतंत्र भारत का अंग बनाने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल न रहे। फिर महान् स्वतंत्रता सेनानी और भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ० राजेन्द्र प्रसाद, स्वतंत्र भारत के पहले गवर्नर जनरल राजगोपालाचार्य, पहले शिक्षा मंत्री और विद्वान स्वतंत्रता सेनानी मौलाना आज़ाद, रफी अहमद किदवई, उसके बाद महान् पिता की महान् सन्तान और स्वतंत्र भारत के पहले प्रधान मंत्री पं० जवाहर लाल नेहरू आदि महान् नेता स्वर्ग सिधार गये । और भी कई ऐसे नेता स्वर्गवासी हो गये कि जिनका देश को स्वतंत्र कराने में बहुत बड़ा योगदान था। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, डॉ० विधान चन्द्र राय, पं० मदनमोहन मालवीय, पं० गोविन्दबल्लभ पन्त आदि इसी प्रकार के नेता थे !
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद नेतृत्व की शक्ति पाने वाली श्रीमती इन्दिरा गाँधी आदि का स्मरण भी किया जा सकता है ! इन व्यक्तियों से तो हम पिछले चवालीस वर्षों में हाथ मी ही चुके हैं, कुछ दुखद घटनाएँ भी घट चुकी हैं, जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता । स्वतंत्रता प्राप्ति के तत्काल बाद कवायलियों की आड़ में भारत के एक भाग कश्मीर पर पाकिस्तान ने आक्रमण करके उसके बहुत बड़े भाग पर अपना अधिकार जमा लिया जो आज भी हमारा सरदर्द बना हुआ है । सन् 1962 में ‘हिन्दी चीनी भाई-भाई’ का नारा लगाने वाले, पंचशील के सिद्धान्तों को बनाने में सहायता करने वाले चीन ने भारत की उत्तर-पूर्वी सीमा पर अचानक आक्रमण करके हज़ारों किलोमीटर इलाके पर अपना अधिकार जमा लिया। यह अधिकार आज भी ज्यों-का-त्यों बना हुआ है। अपने इन इलाकों को चाहकर भी हम पाकिस्तान और चीन के शिकंजे से छुड़ा नहीं सके, न ही निकट भविष्य में छुड़ा पाने की सम्भावना ही है। इसी बीच सन् 1965 और सन् 1971 में भारत को अपने ही अंग काटकर बने पाकिस्तान से युद्ध लड़ने पड़े । युद्ध लड़ कर ही उस बँगला देश का निर्माण कराया, जो आज सारे अहसानों को भुलाकर जब-तब आँखें दिखाता रहता है !
इन बाहरी बुराइयों के अतिरिक्त पिछले चवालीस – पैंतालीस वर्षों में भारत को कई प्रकार की आन्तरिक दुर्घटनाओं और बुराइयों से भी दो-चार होना पड़ा, तथा अब भी होना पड रहा है । पहले तेलंगाना – आन्दोलन के फलस्वरुप आन्ध्र प्रदेश का निर्माण करना पड़ा । फिर नक्सलवादियों का मारक आन्दोलन शुरू हो गया, जो थोड़ा-बहुत आज भी मौजूद है, उसके दुष्परिणाम सामने आते रहते हैं । नागालैण्ड, मिज़ोरम जैसे प्रान्तों का निर्माण अलगाववादी आन्दोलनों का ही परिणाम कहा जा सकता है । गोरखालैण्ड का आन्दोलन चला ! आसाम में भी अलगाववादी आन्दोलन चल रहा है । परन्तु इस प्रकार के जिन अलगाववादी उम्र आन्दोलनों से भारत सरकार और जनता को दो-चार होना पड़ रहा है, वे पंजाब और कश्मीर में चल रहे हैं ! इनका रूप उम्र से उग्रतर होता जा रहा है। अभी तक उनकी समाप्ति का कोई आसार नज़र नहीं आ रहा ! भविष्य ही इनका परिणाम बता सकेगा। अभी तक तो हालात बहुत बुरे हैं ।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पिछले चवालीस वर्षों में घटने वाली इन दुखपूर्ण घटनाओं को सामान्य रूप से जान लेने के बाद अब उपलब्धियों की चर्चा की जा सकती है। स्वतंत्र भारत का अपना स्वतंत्र संविधान बनना, भारत को जनतंत्र या गणतंत्र घोषित करना पहली महत्त्वपूर्ण उपलब्धि कही जा सकती है । यह बात ध्यान में रखने वाली है कि भारत जब स्वतंत्र हुआ था, तब यहाँ प्रायः सभी कुछ विदेशों से आयात किया जाता था ! परन्तु आज सूई से लेकर हवाई जहाज, जलयान, बड़ी-बड़ी मशीनें और आधुनिकतम यंत्र कम्प्यूटर तक का निर्माण अपने ही साधनों से यहीं पर ही होने लगा है ! आज यह माना जाता है कि अणु-शक्ति से सम्पन्न देश ही उन्नत होगा या हो सकता है । सो स्वतंत्र भारत को इस दृष्टि से भी पीछे या पिछड़ा हुआ नहीं कहा जा सकता । मुख्य रूप से भारत अणु-शक्ति का उपयोग यद्यपि शान्तिपूर्ण कार्यों उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए ही कर रहा है, पर उसके अन्य उपयोगों से भी वह भली प्रकार परिचित है। सफलतापूर्वक प्रयोग कर चुका और कर रहा है । पोखरण नामक स्थान पर भूमिगत परमाणु विस्फोट, अनेक उपग्रहों का सफल अन्तरिक्ष में स्थापन, धरती से धरती तक और आकाश से आकाश तक मार करने वाली मिसाइलों का सफल निर्माण और परीक्षण, आदि सभी बातें यह प्रमाणित करने वाली हैं कि भारत ने अणु-शक्ति के क्षेत्र में भी महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर लिया है ! अणु-शक्ति से संचालित बिजली घरों, कल-कारखानों, अन्य प्रकार के आधुनिक संस्थानों का भी निर्माण वह कर चुका तथा निरन्तर कर रहा है। कहा जा सकता है कि आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के सभी क्षेत्रों में पिछले चवालीस पैंतालीस वर्षों में भारत ने अभूतपूर्व उन्नति कर ली है आज उसकी गणना अपनी गरीबी और लाचारी में भी अणु-शक्ति वाले कुछ मुख्य देशों में की जाती है
दूसरी ओर, शिक्षा, कृषि, व्यापार, राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में विकास और विस्तार, सैन्य शक्ति की दृढ़ता, सैनिक उपकरणों में आधुनिकता आदि की दृष्टि से भी भारत बहुत आगे बढ़ चुका है। उसने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद बड़े-बड़े इंजीनियरी के कल-कारखाने तो स्थापित किये ही हैं, नदी घाटी – योजनाएँ और बाँध आदि भी पूरे किये हैं। वह नयी-नयी तकनीक का आयात ही नहीं निर्यात भी कर सकने वाला देश बन चुका है। एशियाई तथा अरब देशों के कई प्रकार के निर्माणों में भारत द्वारा अपनी तकनीक और तकनीशियनों द्वारा सहायता पहुँचाना इन सबका स्पष्ट प्रमाण है। कपड़ा, रेल, व्यापार-धन्धे के विविध क्षेत्रों में सभी तरह से वह स्वयं उन्नति कर अन्य देशों की उन्नति में हर संभव सहायता कर रहा। भारत की बनी घड़ियाँ तो घड़ियों की जन्मभूमि और घर माने जाने वाले स्विट्ज़रलैण्ड तक में आयात की जाती हैं । कारों- स्कूटरों आदि का भी निर्यात हो रहा है ! इस प्रकार सामान्य तौर पर कहा जा सकता है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद के ये वर्ष प्रायः सभी प्रकार से प्रगति और विकास के ही रहे हैं ।
दूसरी तरफ एक महत्त्वपूर्ण पक्ष में भारत देश इन चवालीस – पैंतालीस वर्षों में पिछड़ भी बहुत गया है । सुई से लेकर हवाई जहाज तक सब कुछ निर्माण कर पाने में सफल होने वाला भारत यदि कुछ निर्माण नहीं कर सका, तो वह है राष्ट्रीय चरित्र ! इस क्षेत्र में तो उसके पास जो कुछ पराधीनता – काल में था और जिस पर वह गर्व किया करता था, वह सब भी उसने पूरी तरह से गँवा दिया है। तभी तो इतने निर्माण, कई-कई योजनाओं का लाभ आम आदमी तक कतई नहीं पहुँच पाया! सब कुछ भ्रष्टाचार का शिकार होकर रह गया है । राष्ट्रीय चरित्र की कमी के कारण हमारी अपनी सांस्कृतिक जीवन-दृष्टि खो गयी है । हम केवल नकलची, हिंसा-वासना के भूखे कीड़े बन कर रह गये हैं। अपने छोटे से स्वार्थ के लिए दूसरों की रोटी ही नहीं छीन लेना चाहते, शरीर के कपड़े और मांस तक नोच लेना चाहते हैं । इसने हमारी सारी राष्ट्रीय उपलब्धियों को व्यर्थ करके रख दिया है। इस हीनता के कारण कई बार सिर झुक जाता है। यह सोचने को मजबूर भी हो जाना पड़ता है कि आज से चवालीस पैंतालीस वर्ष पहले क्या सचमुच हम स्वतंत्र भी हुए थे ? लगता है नहीं हुए थे हुए होते तो हमने वास्तविक स्वतंत्रों की तरह स्वार्थ रहित जाना न सीखा होता !