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निबंध – अनुशासन का महत्त्व | nibandh – anushaasan ka mahattv

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nibandh - anushaasan ka mahattv
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निबंध – अनुशासन का महत्त्व | nibandh – anushaasan ka mahattv : ‘अनुशासन’ शब्‍द ‘अनु’ और ‘शासन’ इन दो शब्‍दों के मेल से अना है। ‘अनु’ उपसर्ग है, जिसका अर्थ है- पश्‍चा‍त् या साथ, ‘शासन’ का अर्थ है नियम या विधान। इस प्रकार ‘अनुशासन’ का अर्थ है कि हम जिस स्थान पर रहे हों, देश-काल के अनुसार वहाँ के जो नियम और विधान हैं, सामान्य और स्वीकृत आचार-व्यवहार हैं, उनका उचित ढंग से पालन करना ही अनुशासन है। सभी विद्वान, समझदार लोग यह मानते हैं कि व्यक्ति के सामान्य व्यवहार से लेकर सभी प्रकार के विशेष व्यवहारों के लिए अनुशासन बहुत आवश्यक है । अनुशासन में रहकर हर व्यक्ति सहज भाव से आगे बढ़ता हुआ अपने जीवन का लक्ष्य प्राप्त कर सकता है। इसी प्रकार महान राष्ट्रीय लक्ष्य पाने के लिए भी अनुशासन बहुत आवश्यक है ।

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मनुष्य को सामाजिक प्राणी इसी कारण कहा जाता है कि वह हर कार्य दूसरों का ध्यान रखकर अनुशासित ढंग से किया करता है। ध्यान रहे, बच्चे अपने बड़ों व्यवहारों, क्रिया-कलापों आदि को देखकर ही जीवन-व्यवहारों को सीखा करते हैं। बड़ों द्वारा किये गये कार्य ही वास्तव में बच्चों और छोटे के लिए अनुशासन के नियम और निर्देश बना करते हैं। अतः हर व्यक्ति का कर्तव्य हो जाता है कि वह उचित और अनुशासन भरा व्यवहार करे। वास्तव में मनुष्यों का स्थान- समय और आवश्यकता को पहचान कर किया गया सन्तुलित व्यवहार ही अनुशासन का रूप धारण कर लिया करता है । शरीर को स्वस्थ-सुन्दर बनाये रखने के लिए जिस प्रकार सन्तुलित भोजन आवश्यक हुआ करता है, उसी प्रकार जीवन और समाज को स्वस्थ, सुन्दर बनाये रखने के लिए हर व्यक्ति के लिए अनुशासित होना भी बहुत ही आवश्यक है। जैसे बासी और सड़ा-गला खाना, आवश्यकता या भूख से अधिक खाना, तन-मन के साथ-साथ आत्मा को भी अस्वस्थ और असुन्दर बना दिया करता है, उसी प्रकार अनुशासनहीनता जीवन और समाज के स्वरूप और आत्मा को बिगाड़ दिया करती है । हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि हम सामाजिक प्राणी हैं । हमारे तन-मन के स्वस्थ-सुन्दर, हमारे व्यवहारों के अनुशासित रहने से ही हमारा समाज उन्नत होगा । सुखी एवं समृद्ध भी बन सकेगा। इस कारण हमें कभी भी कोई ऐसा व्यवहार, कोई ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए, जिसका समाज पर बुरा प्रभाव पड़े। अच्छे उदाहरणों से ही जीवन और समाज को आदर्श बनाया जा सकता है ।

निबंध – अनुशासन का महत्त्व | nibandh – anushaasan ka mahattv

अब तनिक यह भी देख और विचार लिया जाये कि व्यावहारिक दृष्टि से वास्तव में अनुशासन है क्या ? विचार करने पर पाते हैं कि वह तो बड़ा ही सरल और सीधा-सादा व्यवहार मात्र ही है ? कोई विद्यार्थी है, तो उसके लिए बाकी सारी बातें भुलाकर शिक्षा प्राप्त करने में मन लगाना ही अनुशासन है । शिक्षा प्राप्त करने का अर्थ केवल किताबें पढ़कर परीक्षाएँ पास करना ही नहीं होता, बल्कि हर प्रकार से कुछ सीखना भी हुआ करता है। अपने गुरुजनों का आदर, उनके सद्व्यवहारों को अपनाना, अपने सहपाठियों के साथ अपने बोलचाल आदि को ठीक रखना, सभी का सम्मान करना, सभी के प्रति नम्र व्यवहार करना, सहपाठियों के कार्यों में बाधा न पहुँचाना और ज़रूरत पड़ने पर उनकी सहायता करना ही वास्तव में अनुशासन है। इसके लिए हमें कुछ भी अतिरिक्त नहीं करना पड़ता ।

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घर में बड़ों का आदर करना, छोटों के प्रति स्नेह रखना, समान आयु वालों के प्रति समानता का व्यवहार करना भी अनुशासन ही है। घर में बड़ों का कहना मानना, वक्त पर उठना, नाश्ता-भोजन आदि करना, वक्त पर सोना, घरेलू कार्यों में अपनी शक्ति और योग्यतानुसार हाथ बटाना भी अनुशासन ही कहा जाता है। अपने घर-परिवार के साथ रहते हुए आस-पड़ोस के लोगों से आदर, सम्मान और नम्रता से पेश आना चाहिए। कोई भी ऐसा काम न करो, जिससे हमें या हमारे घर-परिवार के लोगों को लज्जित होना पड़े। ऐसा काम कभी नहीं करना चाहिए कि जिसका दूसरों पर अच्छा प्रभाव न पड़े। इस प्रकार स्पष्ट है कि जिसे अच्छा और उचित व्यवहार करना कहा जाता है, वास्तव में वही अनुशासन है।

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हम देखते हैं कि सड़कों पर चलते हुए लोग दूसरों का ख्याल नहीं रखते, परवाह नहीं करते और धक्के देते हुए आगे बढ़ जाने की चेष्टा किया करते हैं । उन्हें इस बात की चिन्ता भी नहीं रहती कि कोई गिरकर घायल हो सकता है। ऐसा भी देखा जाता है कि सड़कों, गलियों आदि पर चलते हुए लोग ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाते हुए, दूसरों को या आपस में गाली-गलौज करते हुए आ-जा रहे हैं। उन्हें इस बात की चिन्ता नहीं रहती कि आस-पास से गुज़रने वाले लोगों पर उनके इस व्यवहार का ग़लत प्रभाव पड़ रहा है । उनके आस-पास से बच्चे, बूढ़े और महिलाएँ गुज़र रही हैं, इस सबकी परवाह न कर लोग अनाप-शनाप बकते और गालियाँ देते रहते हैं । सार्वजनिक स्थानों, पार्कों आदि में बैठकर जुआ खेलते हैं, नशाखोरी करते और हुल्लड़ मचाते हैं। इस प्रकार के सभी व्यवहार केवल अनुशासनहीनता ही नहीं, असभ्यता भी माने जाते हैं । इनसे बचना आवश्यक है ! याद रहे, व्यक्ति अपने व्यवहार से ही पहचाना जाता है। ठीक उसी प्रकार अच्छे समाज और महान राष्ट्रों की पहचान उसके अनुशासित नागरिकों के पहचान से ही हुआ करती है। इस प्रकार अनुशासन वह आईना है, जिसमें सभ्य और सुसंस्कृत जातियों, समाजों और राष्ट्रों का प्रतिबिम्ब (परछाईं, झलक) सरलता से देखा और परखा जा सकता है। हो सकता है कोई व्यक्ति बहुत पढ़ा-लिखा हो, उसका खानदान भी बड़ा ऊँचा हो सकता है । किन्तु यदि उसका व्यवहार सहज, सरल, मानवीय आदर्शों और अनुशासनों का पालन करने वाला नहीं, तो उसकी सारी शिक्षा और वंश की उच्चता व्यर्थ होकर रह जाती है। इस प्रकार के अनुशासनहीन लोगों को ही वंश का नाम डुबोने वाला कहा जाता है । अगर इस तरह के लोगों की संख्या बढ़ जाती है, तो ऐसे लोग केवल वंश ही नहीं, जाति-धर्म, देश और राष्ट्र को भी डुबोने वाले साबित हुआ करते हैं। यदि हमें इस प्रकार के कलंकों से बचना है, सहज स्वाभाविक नियमों का निर्वाह आवश्यक रूप से करना होगा !

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जैसा कि हम पहले भी कह आये हैं, अनुशासन भरा जीवन बिताने के लिए किन्हीं कठोर नियमों का पालन नहीं करना होता । बस, स्थान, समय और स्थिति का ध्यान रखते हुए उचित-सन्तुलित व्यवहार करना ही आवश्यक हुआ करता है । इस प्रकार के व्यवहार को ही अनुशासन कहा जाता है। सामान्य तौर पर सत्य, अहिंसा, सदाचार, प्रेम, भाईचारा, व्यवहार में नम्रता, करुणा, शिष्टाचार का उचित निर्वाह आदि सभी बातों को अनुशासन ही कहा- माना जाता है। मतलब यह है कि सहज मनुष्य बने रहकर हम जो इस प्रकार के व्यवहार करते हैं कि जो किसी के लिए हानिकारक प्रमाणित नहीं होते, यदि लाभ नहीं तो हानि भी नहीं पहुँचाते, वे सभी अनुशासन के लक्षण एवं उदाहरण हैं। स्पष्ट है कि इनका पालन और निर्वाह बिना किसी अतिरिक्‍त परिश्रम के किया जा सकता है। बस, थोड़ा सावधान रहना आवश्‍यक हुआ करता है। ध्‍यान रहे, अनुशासित देश और राष्‍ट्र ही सब प्रकार की प्रगति और विकास कर पाते हैं। इन तथ्‍यों के आलोक में स्‍पष्‍ट कहा और देखा- समझा जा सकता है कि व्‍यक्ति से लेकर राष्‍ट्र तक के जीवन में अनुशासन का वास्‍तविक महत्त्व क्‍या हुआ करता है।

Zaheer Usmani

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